Afghan Women Defy Taliban |
तालिबान के शासन के बाद अफगानिस्तान की महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है। जब 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तो महिलाओं के अधिकार लगभग समाप्त हो गए। वे अपने घरों तक सीमित हो गईं, उनकी शिक्षा, रोजगार और खेल-कूद जैसे क्षेत्रों में भागीदारी को बंद कर दिया गया। खासकर महिलाओं की क्रिकेट टीम को पूरी तरह बैन कर दिया गया।
लेकिन इस अंधकार में भी कुछ महिलाओं ने अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत नहीं हारी। ऐसी ही एक खिलाड़ी, बेनफ शाह हाशमी, जिन्होंने तालिबान के शासन के बाद अफगानिस्तान छोड़ दिया और अब ऑस्ट्रेलिया में शरणार्थी के रूप में रह रही हैं, अपने देश की महिला क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। यह सिर्फ क्रिकेट का खेल नहीं है, बल्कि उनकी दृढ़ता और तालिबान के खिलाफ उनके संघर्ष का प्रतीक है।
बेनफ और उनकी टीम 30 जनवरी को मेलबर्न में "क्रिकेट विदाउट बॉर्डर्स" के तहत एक टी-20 मैच खेलने जा रही हैं। इस मैच को सिर्फ एक खेल के रूप में नहीं देखा जा रहा है, बल्कि इसे एक बड़ा संदेश माना जा रहा है। यह मैच उन लोगों को प्रेरित करने का प्रयास है, जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने अधिकारों और सपनों के लिए लड़ रहे हैं। यह उनके लिए एक सेलिब्रेशन है, जो अपने देश में महिलाओं के लिए समानता और स्वतंत्रता की उम्मीद जगाता है।
ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों ने तालिबान के अत्याचारों के खिलाफ अपना विरोध जताने के लिए अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय सीरीज खेलने से मना कर दिया है। हालांकि, वैश्विक खेल निकाय जैसे आईसीसी और अन्य प्रमुख क्रिकेट बोर्डों का रवैया इन महिलाओं के प्रति उदासीन ही रहा है। इन निकायों ने महिलाओं की इस संघर्षपूर्ण कहानी को पहचानने में काफी समय लिया।
यहां सवाल उठता है कि क्या वैश्विक मंच पर इन महिला खिलाड़ियों के प्रयासों का सही मूल्यांकन हो पा रहा है? तालिबान ने महिलाओं के लिए हर दरवाजा बंद कर दिया है। अफगानिस्तान में महिलाएं खुलकर सांस भी नहीं ले सकतीं। विधवाओं को भी बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। ऐसे में, जो महिलाएं इस व्यवस्था के खिलाफ खड़ी हैं, वे हमारे समाज के लिए प्रेरणा हैं।
भारत भी तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है, लेकिन महिलाओं के अधिकारों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए कोई भी राहत अब तक बहुत दूर की बात लगती है। क्रिकेट के मैदान में इन महिलाओं की मौजूदगी उस साहस का प्रतीक है, जिसे दुनिया की नजरों से अब तक छुपाया गया था।
बेनफ और उनकी टीम का सफर केवल खेल के मैदान तक सीमित नहीं है। उन्होंने अपने संघर्ष से यह साबित कर दिया है कि महिला सशक्तिकरण के लिए दुनिया को एकजुट होना होगा। उनके लिए, क्रिकेट केवल एक खेल नहीं है, यह उनके अस्तित्व और उनके सपनों की कहानी है।
हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन्हें समर्थन मिल रहा है, लेकिन यह काफी नहीं है। वैश्विक समुदाय को आगे आकर इन महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करनी होगी। अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए यह संघर्ष केवल उनकी आजादी का नहीं, बल्कि उनकी पहचान का भी सवाल है।
तालिबान के अधीन महिलाओं को दबाया गया, लेकिन बेनफ जैसी महिलाओं ने यह दिखा दिया कि जब दुनिया उन्हें अनदेखा करती है, तो भी वे अपने सपनों को नहीं छोड़तीं। यह एक ऐसी कहानी है, जो न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए प्रेरणा बननी चाहिए।