Farming |
बेलवर्गीय सब्जियों की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प है, खासकर जनवरी से मार्च के बीच। इस मॉडल में 2.5 एकड़ भूमि का उपयोग कर, किसान हर महीने लाखों की कमाई कर सकते हैं। इस पद्धति में करेला, लौकी, गिलकी, तोरई, और सेम की खेती शामिल है। करेला एक एकड़ में, गिलकी और तोरई आधा-आधा एकड़ में, सेम भी आधा एकड़ में और लौकी खेत की बाउंड्री पर उगाई जाती है। इस तरह से पांच फसलें एक ही खेत में उगाई जाती हैं। यह मॉडल इसलिए कारगर है क्योंकि करेले का बाजार मूल्य अधिक होता है, जबकि गिलकी और तोरई की खेती सीमित मात्रा में की जाती है ताकि नुकसान की संभावना कम हो। सेम की फली की बाजार मांग अप्रैल और मई में होती है, इसलिए इसे भी सीमित क्षेत्र में उगाया जाता है।
खेती की शुरुआत के लिए उचित बीज का चयन और सही समय पर बुवाई जरूरी है। मसलन, करेले के लिए वीएनआर की "आकाश" वैरायटी, गिलकी के लिए निर्मल सीट्स की "एनएस जीएस 341," और सेम के लिए "सरप सीट्स की एसएफबी 42" वैरायटी उपयुक्त मानी जाती हैं। खेत तैयार करने के लिए जुताई और रोटावेटर का उपयोग किया जाता है। बेड बनाने के बाद मल्चिंग पेपर का इस्तेमाल किया जाता है ताकि नमी बनी रहे और फसल की जड़ें बेहतर तरीके से विकसित हों। हर होल पर दो बीज लगाए जाते हैं, और लोकी के लिए ढाई से तीन फीट की दूरी रखी जाती है।
मचान विधि (trellis method) का उपयोग बेल वाली सब्जियों की खेती में मददगार साबित होता है, खासकर तब जब बुवाई जनवरी या फरवरी में की गई हो। लेकिन अगर बुवाई मार्च के बाद की जाती है, तो परंपरागत विधि अपनानी चाहिए। यह इसलिए क्योंकि गर्मियों में तेज लू फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। सही समय पर बुवाई और देखभाल से फसल का उत्पादन बढ़ता है।
इस मॉडल से उत्पादन के आंकड़े भी प्रेरणादायक हैं। करेला की एक एकड़ खेती से लगभग 100 क्विंटल उपज मिल सकती है। यदि मंडी में इसका भाव ₹40 प्रति किलो भी मिलता है, तो किसान की कमाई 4 लाख हो सकती है। गिलकी और तोरई से आधा-आधा एकड़ में लगभग 100 क्विंटल उत्पादन होता है। सेम की फली से 20 क्विंटल उत्पादन होता है, जिसका बाजार मूल्य अधिक होता है। लौकी, जो बाउंड्री पर उगाई जाती है, अतिरिक्त आय का स्रोत बनती है।
इस खेती के कुल लाभ की बात करें तो, ढाई एकड़ की इस प्रणाली से 3.5 लाख से 4.5 लाख तक की कमाई संभव है। बाजार मूल्य बढ़ने पर यह आंकड़ा 5 लाख तक पहुंच सकता है। किसानों के लिए यह एक बेहतरीन अवसर है कि वे कम लागत में अधिक मुनाफा कमाएं।
यह खेती का मॉडल किसानों को आधुनिक तकनीक और परंपरागत ज्ञान का मेल सिखाता है। सही योजना, बीज का चुनाव और फसल की देखभाल से खेती को एक सफल व्यवसाय बनाया जा सकता है। किसानों को चाहिए कि वे इस पद्धति को अपनाकर अपनी आय बढ़ाएं और कृषि को लाभदायक बनाएं।
डिस्क्लेमर:
इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक और जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से है। यह सामग्री विशेषज्ञ सलाह या सटीक व्यावसायिक मार्गदर्शन का विकल्प नहीं है। खेती से संबंधित किसी भी निर्णय को लेने से पहले कृपया विशेषज्ञों से परामर्श करें और अपनी स्थानीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार निर्णय लें। लेख में उपयोग की गई किसी भी जानकारी से उत्पन्न होने वाले किसी भी लाभ या नुकसान के लिए लेखक या प्रकाशक जिम्मेदार नहीं होंगे। खेती के दौरान सभी सरकारी नियमों और दिशानिर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।