Taliban Turned Against Pakistan |
यह लेख तालिबान और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और इसकी पृष्ठभूमि की गहरी विवेचना करता है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान का रिश्ता इतिहास से जटिल और संघर्षपूर्ण रहा है। हाल के घटनाक्रमों ने इस रिश्ते को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है, विशेष रूप से पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में किए गए हमलों और इन पर तालिबान की प्रतिक्रियाओं के बाद। तालिबान, जिसने अतीत में पाकिस्तान की मदद से अपनी ताकत बनाई थी, अब पाकिस्तान के लिए चुनौती बन गया है। पाकिस्तान की नीति, जो क्षेत्रीय अस्थिरता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, अब उसी के खिलाफ काम कर रही है।
तालिबान और पाकिस्तान के बीच विवाद मुख्य रूप से आदिवासी और सीमा क्षेत्रों को लेकर है। पश्तून बहुल इलाकों में तालिबान को भारी समर्थन प्राप्त है, जबकि पाकिस्तान की सेना पंजाबी प्रभुत्व वाली है। इस सांस्कृतिक और भौगोलिक अंतर ने तालिबान को स्थानीय समर्थन दिया है, जो पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अपनी सैन्य कार्रवाईयों को वैध ठहराने के लिए जो भी तर्क दिए हों, वे अफगान जनता और तालिबान के गुस्से को शांत करने में विफल रहे हैं।
तालिबान का गोरिल्ला युद्ध कौशल पाकिस्तान की पारंपरिक सेना के लिए एक गंभीर चुनौती है। तालिबान न केवल लड़ाई में माहिर है, बल्कि वे अपनी रणनीतियों को स्थानीय भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थितियों के अनुसार अनुकूलित करने में सक्षम हैं। पाकिस्तान की सेना, जो इस क्षेत्र में परिचित नहीं है, अक्सर इन परिस्थितियों में खुद को कमजोर पाती है। इसके अलावा, पाकिस्तान की सेना और सरकार ने अफगान शरणार्थियों के प्रति जिस तरह का व्यवहार किया है, उससे भी तालिबान और अफगान जनता के बीच पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोश बढ़ा है।
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को अस्थिर करने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान में गृह युद्ध और तालिबान का उदय पाकिस्तान की भ्रामक नीतियों का परिणाम है। पाकिस्तान ने अमेरिका से वित्तीय और सैन्य सहायता लेकर अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया, जिससे वहां की स्थिति और बिगड़ गई। आज, वही तालिबान, जिसे पाकिस्तान ने खड़ा किया था, पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा है। अफगानिस्तान के लोग पाकिस्तान को अपने देश की अस्थिरता के लिए दोषी मानते हैं, और यही भावना तालिबान के व्यवहार में भी परिलक्षित होती है।
पाकिस्तान की विदेश नीति में तालिबान को लेकर स्पष्टता की कमी ने स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है। पाकिस्तान के नेता, चाहे वे राजनीतिक हों या सैन्य, तालिबान के साथ संवाद स्थापित करने में विफल रहे हैं। वे अक्सर ऐसे कदम उठाते हैं, जो उनके अपने हितों के खिलाफ जाते हैं। तालिबान के साथ बातचीत करने की बजाय, पाकिस्तान की सेना ने उनके खिलाफ हवाई हमले किए हैं, जिससे स्थिति और खराब हो गई है। यह नीति केवल हिंसा के चक्र को बढ़ावा देती है, जिसमें दोनों पक्ष हताहत होते हैं।
तालिबान के बढ़ते प्रभाव और उनकी रणनीतिक स्थिति को देखते हुए, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान को तालिबान के साथ शांतिपूर्ण संवाद स्थापित करना चाहिए। इसके लिए पाकिस्तान को अपनी सेना के बजाय अपने राजनयिकों और नेताओं को तालिबान के साथ बातचीत के लिए भेजना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान के नेतृत्व में गंभीरता और दूरदर्शिता की कमी ने इस संकट को और अधिक गहरा कर दिया है।
पाकिस्तान के अंदरूनी राजनीतिक और सामाजिक हालात भी इस संकट को बढ़ा रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक समस्याएं और सामाजिक विभाजन ने पाकिस्तान को कमजोर कर दिया है। इन स्थितियों में, पाकिस्तान तालिबान जैसे संगठन के खिलाफ प्रभावी रणनीति नहीं बना पा रहा है। पाकिस्तान के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण का है। उसे यह समझना होगा कि उसकी आक्रामक नीतियां और अपने पड़ोसियों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार न केवल क्षेत्रीय शांति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि खुद पाकिस्तान के लिए भी विनाशकारी हैं।
इस संघर्ष के दीर्घकालिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं। अगर पाकिस्तान और तालिबान के बीच का तनाव जारी रहता है, तो यह पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है। पाकिस्तान की स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि वह अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करे और तालिबान के साथ एक स्थायी समाधान खोजे।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के इस विवाद से यह स्पष्ट है कि हिंसा का कोई अंत नहीं होता। एक स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान केवल संवाद और सहयोग से ही संभव है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि शांति केवल तभी संभव है, जब वह अपनी आक्रामक नीतियों को छोड़कर एक सहायक और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाए।