Singapore's Water Revolution |
सिंगापुर, एक छोटा द्वीप देश, अपनी अद्वितीय जल प्रबंधन प्रणाली के लिए विश्व भर में एक मिसाल बन चुका है। हालांकि यह देश आर्थिक रूप से बेहद संपन्न और व्यवस्थित है, इसके पास प्राकृतिक जल स्रोतों की बेहद कमी है। ताजे पानी की सीमित उपलब्धता और बढ़ती जनसंख्या ने सिंगापुर को एक ऐसे जल संकट के सामने ला खड़ा किया जिसे उसने अपनी दूरदर्शी योजनाओं और तकनीकी प्रगति से हल किया है।
सिंगापुर के इस सफर की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई, जब जल संकट ने पहली बार गंभीर रूप लिया। उस समय ब्रिटिश उपनिवेश रहे सिंगापुर को अपने पड़ोसी मलेशिया से जल की आपूर्ति करनी पड़ती थी। लेकिन जब युद्ध के दौरान मलेशिया से जल आपूर्ति बाधित हुई, तब सिंगापुर ने अपनी जल आत्मनिर्भरता की योजना बनानी शुरू की। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी जल राशनिंग और नियमित बाढ़ जैसी समस्याएं बनी रहीं। इन चुनौतियों से पार पाने के लिए सिंगापुर ने "फोर नेशनल टैप्स" (Four National Taps) नामक जल रणनीति विकसित की।
इस योजना के चार मुख्य स्तंभ हैं: जल आयात, वर्षा जल संचयन, जल पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग), और समुद्री जल को पीने योग्य बनाने की तकनीक। जल आयात में सिंगापुर ने मलेशिया के साथ एक समझौते के तहत अपनी जरूरत का पानी खरीदने की शुरुआत की। लेकिन मलेशिया के साथ पानी की आपूर्ति को लेकर उत्पन्न तनाव ने सिंगापुर को 2061 तक जल आयात पर अपनी निर्भरता खत्म करने की योजना बनाने के लिए मजबूर किया।
वर्षा जल संचयन के मामले में, सिंगापुर ने अपनी भूमि का 90% हिस्सा वर्षा जल संग्रहण के लिए इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। इसके लिए देशभर में जलाशयों और भूमिगत टैंकों का जाल बिछाया गया है। इनमें से सबसे बड़ा मरीना बैराज है, जो न केवल बाढ़ रोकने में मदद करता है, बल्कि वर्षा जल को संचित करके उपयोग में भी लाता है।
जल पुनर्चक्रण की बात करें तो, सिंगापुर ने "न्यू वाटर" (New Water) के रूप में इस्तेमाल किए गए पानी को माइक्रोफिल्ट्रेशन, रिवर्स ऑस्मोसिस, और अल्ट्रावायलेट रेडिएशन जैसी तकनीकों से शुद्ध कर पुनः उपयोग में लाने की शुरुआत की। यह पानी इतना शुद्ध है कि इसे सिंगापुर की चिप मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में भी उपयोग किया जाता है। देश में जल पुनर्चक्रण ने इस स्तर तक सफलता हासिल की है कि 2060 तक सिंगापुर की 55% जल जरूरतें पुनर्चक्रित जल से पूरी की जा सकेंगी।
समुद्री जल को पीने योग्य बनाने के लिए, सिंगापुर ने अत्याधुनिक डीसैलिनेशन प्लांट्स का निर्माण किया है। इन प्लांट्स की मदद से समुद्री पानी से खारापन दूर किया जाता है। यह प्रक्रिया महंगी जरूर है, लेकिन सिंगापुर के पास वित्तीय संसाधन और तकनीकी दक्षता होने के कारण इसे अपनाना संभव हुआ।
सिंगापुर में जल संरक्षण को लेकर जागरूकता भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकार द्वारा घरों में जल खपत पर नजर रखने के लिए डिजिटल मीटर लगाए गए हैं। लीकेज से पानी की बर्बादी को रोकने के लिए सख्त निगरानी की जाती है। यहां तक कि देशव्यापी अभियानों के माध्यम से लोगों को जल बचाने के उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
सिंगापुर की इस सफलता का श्रेय उसकी राजनीतिक स्थिरता, तकनीकी नवाचार, और सामूहिक जागरूकता को दिया जा सकता है। इस छोटे से देश ने दिखाया है कि यदि इच्छाशक्ति और सही रणनीति हो, तो जल संकट जैसे गंभीर मुद्दे का भी समाधान किया जा सकता है। सिंगापुर के प्रयास न केवल जल प्रबंधन में उसकी आत्मनिर्भरता का प्रमाण हैं, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा भी है।