MP's Bold Reforms |
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्वास्थ्य और न्याय व्यवस्था में सुधारों की दिशा में किए गए प्रयास और उनकी विफलताएं हाल ही में सामने आई हैं। राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन की कमी का मुद्दा गंभीरता से उठाया गया है। कैग की रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी) और सिविल अस्पतालों (सीएच) में, आवश्यक पदों में से 41 से 50 प्रतिशत पद स्वीकृत ही नहीं किए गए हैं। आईपीएचएस (Indian Public Health Standards) मानदंडों के अनुसार स्वीकृत पदों की संख्या को ध्यान में रखते हुए, यह कमी चौंकाने वाली है। इसके अतिरिक्त, डीएचएस (District Health Services) में 15 से 23 प्रतिशत पद स्वीकृत ही नहीं किए गए हैं। विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों (एचएलएस) में 18 से 75 प्रतिशत तक कम पद स्वीकृत किए गए हैं, जो दर्शाता है कि सरकार की प्राथमिकता सूची में स्वास्थ्य क्षेत्र को अधिक महत्व नहीं दिया गया।
डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी का सबसे अधिक असर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में दिखता है। राज्य के डीएचएस में डॉक्टरों के 3,028 स्वीकृत पदों में से केवल 1,659 डॉक्टर तैनात थे। इसी प्रकार, सिविल अस्पतालों में 1,226 डॉक्टरों के स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल 527 डॉक्टर ही तैनात हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी) और उपस्वास्थ्य केन्द्रों (एसएचसी) में 2,047 डॉक्टरों की कमी दर्ज की गई। मेडिकल कॉलेजों में 1,213 डॉक्टरों की और आयुष विभाग में 1,139 डॉक्टरों की कमी ने भी स्थिति को और जटिल बना दिया है। इसी प्रकार नर्सिंग कैडर में स्वीकृत पदों के मुकाबले डीएचएस में 1,513, सीएच में 375 और सीएचसी, पीएचसी और एसएचसी में 1,283 नर्सों की कमी दर्ज की गई है। इस स्थिति से यह स्पष्ट है कि जो डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी कार्यरत हैं, वे भारी दबाव में काम कर रहे हैं।
इस बीच, राज्य सरकार ने न्याय और व्यापारिक सुधार के लिए एक बड़ा कदम उठाते हुए जन विश्वास विधेयक-2024 पेश किया है। यह विधेयक आम जनता और उद्यमियों के जीवन को सरल बनाने और व्यवसाय को सुगम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसमें पुराने और अप्रचलित कानूनों को हटाने, कानूनी ढांचे को अद्यतन (update) करने और छोटे अपराधों के लिए दंड प्रणाली को तर्कसंगत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। छोटे अपराधों को गैर-अपराधीकरण की श्रेणी में रखते हुए अब जेल भेजने की बजाय जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक नागरिकों और उद्यमियों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास है कि सरकार उनके साथ है और उनकी समस्याओं को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव का मानना है कि इससे शासन में पारदर्शिता आएगी और मध्यप्रदेश में निवेश एवं रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
राज्य के औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन, ऊर्जा, सहकारिता, श्रम, नगरीय विकास एवं आवास विभाग के आठ अधिनियमों में 64 धाराओं में संशोधन किया गया है। कारावास को जुर्माने में बदलने, दंड को शास्ति (penalty) में परिवर्तित करने और शमन प्रावधान जोड़ने जैसे सुधार शामिल हैं। इस पहल के तहत 920 अप्रचलित अधिनियमों को समाप्त कर दिया गया है, जिससे व्यवसायिक क्षेत्र में काम करना अधिक सरल और त्वरित हो सकेगा। महिला नेतृत्व वाले स्टार्ट-अप में 157 प्रतिशत और कुल स्टार्ट-अप में 125 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही, जीआईएस आधारित भूमि आवंटन प्रणाली और संपदा 2.0 जैसी पहलों ने प्रक्रियाओं को सुगम बनाया है।
यह विधेयक केंद्र सरकार के जन विश्वास अधिनियम, 2023 से प्रेरित है, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर 42 केंद्रीय अधिनियमों में 183 प्रावधानों को अपराध-मुक्त किया। इसने नागरिकों और उद्यमियों के लिए नियामकीय बाधाओं को कम करते हुए छोटे अपराधों को गैर-अपराधीकरण की दिशा में कदम उठाया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इस विधेयक को राज्य की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग रैंकिंग को मजबूत करने वाला एक ठोस कदम बताया है। उन्होंने कहा कि यह मध्यप्रदेश में शासन और विकास का नया अध्याय लिखेगा, जिससे न केवल निवेश में वृद्धि होगी बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
उदाहरण के लिए, किसी की जमीन पर बिना अनुमति पोस्टर लगाने पर अब 500 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि कोर्ट में जुर्माना नहीं भरा गया तो हर दिन 50 रुपए की पेनल्टी का प्रावधान है। नए कानून में इस जुर्माने को 5 हजार रुपए कर दिया गया है। इसी तरह, गृह निर्माण सोसाइटी के संचालन मंडल या उसके किसी पदाधिकारी द्वारा गलत जानकारी देने पर 50 हजार रुपए से अधिक की पेनल्टी नहीं लगेगी। इसके अतिरिक्त, सोसाइटी के रिकॉर्ड की जानकारी न देने पर 25 हजार रुपए तक की पेनल्टी लगाई जाएगी। नगरीय विकास एवं आवास विभाग के एक्ट्स जैसे नगर पालिका अधिनियम 1961 और नगरपालिका निगम अधिनियम 1956 की 40 धाराओं में बदलाव करते हुए फाइन (fine) की जगह पेनल्टी शब्द जोड़ा गया है।
यह विधेयक राज्य में निवेशकों के विश्वास को मजबूत करेगा और शासन प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाएगा। मुख्यमंत्री का मानना है कि इससे मध्यप्रदेश में न केवल आर्थिक सुधार होंगे बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाएं भी सरल होंगी। हालांकि, स्वास्थ्य क्षेत्र में व्याप्त कमियों को देखते हुए यह साफ है कि सरकार को अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। जहां एक ओर विधेयक से विकास के द्वार खुलने की संभावना है, वहीं स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति ने इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
सरकार को चाहिए कि वह स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने और डॉक्टरों तथा स्वास्थ्यकर्मियों की कमी को दूर करने पर ध्यान दे। इससे राज्य में न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा बल्कि लोगों का भरोसा भी बढ़ेगा।