Election Rules Changed: चुनाव नियम बदलाव!

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Election Rules

 हाल ही में केंद्र सरकार ने चुनाव से जुड़े नियमों में बदलाव किए हैं, जिससे देश की विपक्षी पार्टियों ने कड़ा विरोध जताया है। इस बदलाव को लेकर कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि यह लोकतंत्र और संवैधानिक प्रक्रियाओं पर प्रहार है। सरकार के इस कदम को लेकर यह आरोप लगाया जा रहा है कि यह चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता (transparency) को खत्म करने और सरकार के पक्ष में उसे ढालने का प्रयास है।

केंद्र सरकार ने हाल में "कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961" के नियम 93(2)(ए) में बदलाव किया है। इस नियम के तहत पहले कोई भी व्यक्ति, चाहे वह नागरिक हो या चुनाव में खड़ा हुआ उम्मीदवार, चुनाव से जुड़े कागजात और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, जैसे सीसीटीवी फुटेज, मांग सकता था। अब इस बदलाव के बाद केवल उन दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाएगा जो नए संशोधित नियमों में निर्दिष्ट (specified) हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति ने सीसीटीवी फुटेज या किसी पोलिंग स्टेशन के अंदर के रिकॉर्ड्स की मांग की, तो इसे प्रदान नहीं किया जाएगा।

इस नियम में बदलाव का मुख्य कारण एक हालिया मामला है जो पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से संबंधित है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान एक याचिकाकर्ता ने सीसीटीवी फुटेज की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट ने मंजूरी दी थी। अदालत के आदेशानुसार, चुनाव आयोग को यह फुटेज प्रदान करनी पड़ी। इसके बाद चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार से अपील की कि इस प्रकार के आदेशों से बचने के लिए चुनाव से जुड़े नियमों में संशोधन किया जाए। चुनाव आयोग का कहना था कि अगर सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक किया गया, तो इससे संवेदनशील क्षेत्रों जैसे जम्मू-कश्मीर और नक्सल प्रभावित इलाकों में वोटर्स की सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

सरकार के इस निर्णय का राजनीतिक असर भी देखा गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया। उनका कहना था कि पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाए गए चुनाव आयुक्तों के चयन पैनल में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को हटाया और अब इस नियम में बदलाव कर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की है। खड़गे का यह भी आरोप है कि सरकार और चुनाव आयोग की यह मिलीभगत चुनावी पारदर्शिता को कमजोर कर रही है।

आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने भी इस बदलाव पर तीखी प्रतिक्रिया दी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार कुछ बड़ा छिपाने की कोशिश कर रही है। वहीं, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल और जयराम रमेश ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे कानूनी रूप से चुनौती देने की बात कही।

चुनाव आयोग की सफाई है कि यह बदलाव केवल सुरक्षा कारणों से किया गया है। आयोग का कहना है कि वे सभी आवश्यक दस्तावेज प्रदान करेंगे, लेकिन सीसीटीवी फुटेज और अन्य संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आयोग का मानना है कि यदि ये रिकॉर्ड सार्वजनिक हुए, तो इससे न केवल चुनाव प्रक्रिया में बाधा आएगी, बल्कि मतदाताओं की सुरक्षा पर भी सवाल उठेंगे।

विपक्ष का कहना है कि यह निर्णय लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। उनका मानना है कि यह बदलाव चुनावी पारदर्शिता को कमजोर करने और सत्ताधारी पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है। विपक्ष ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की भी योजना बनाई है।

इस पूरे घटनाक्रम से एक बार फिर भारत में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता (credibility) पर बहस छिड़ गई है। जहां एक तरफ सरकार और चुनाव आयोग का तर्क है कि यह बदलाव सुरक्षा और गोपनीयता के लिए आवश्यक है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में अदालत का क्या फैसला आता है और क्या इस निर्णय को बदला जा सकता है।

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