woman in Myanmar |
फरवरी 2021 में म्यांमार में सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद से देश की स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई। इससे पहले कोविड महामारी ने लोगों के जीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया था। महामारी के चलते कई व्यवसाय ठप हो गए, कारखाने बंद हो गए, और देशभर में बेरोजगारी बढ़ गई। ऐसे में जब सैन्य शासन ने देश की बागडोर संभाली, तब से हालात और भी खराब हो गए। महंगाई बढ़ने लगी, काम-धंधे पूरी तरह से बंद हो गए और देश की आर्थिक स्थिति गिरती चली गई। इसका सबसे अधिक असर उन लोगों पर पड़ा जो पहले से ही सीमित संसाधनों पर जी रहे थे।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की कई महिलाएं इस कड़वी सच्चाई से जूझ रही हैं। रिपोर्ट में ऐसी ही एक महिला, मे (May) का उल्लेख है। मे एक पढ़ी-लिखी महिला हैं जिन्होंने डॉक्टर बनने के लिए सालों मेहनत की थी। लेकिन उनकी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। कोविड-19 और सैन्य शासन के बाद म्यांमार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई। महंगाई ने उनके 415 डॉलर की मासिक आय को बेमानी कर दिया। यह पैसा उनकी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी काफी नहीं था। इसके अलावा, उनके पिता की तबियत भी खराब थी। उन्हें किडनी की गंभीर बीमारी थी और उनके इलाज के लिए पैसे की सख्त जरूरत थी। इन हालातों में उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा और उन्हें जिस्मफरोशी का सहारा लेना पड़ा।
मे बताती हैं कि डॉक्टर बनने के लिए उन्होंने कितनी मेहनत की थी। लेकिन जब बुरे हालात आए, तो उन्हें "डेट गर्ल्स" के बारे में पता चला। ये ऐसी महिलाएं थीं जो पुरुषों के साथ समय बिताकर और सेक्स के जरिए पैसे कमा रही थीं। यह सुनने में जितना अजीब लगता है, उनके लिए यह उतना ही जरूरी था। "मैंने अपने सपनों के लिए बहुत मेहनत की थी, लेकिन आज यह सब काम सिर्फ जरूरतों को पूरा करने के लिए कर रही हूँ।" उनकी यह बात उन हजारों महिलाओं की कहानी बयां करती है जो शिक्षा और सम्मान के बावजूद अपने परिवार को बचाने के लिए मजबूरी में यह काम कर रही हैं।
देश में यह समस्या सिर्फ मे तक सीमित नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट में आधा दर्जन महिलाओं से बातचीत की गई, जो शिक्षित थीं और सम्मानजनक पेशों में काम करती थीं। इनमें से कुछ शिक्षक थीं, तो कुछ नर्स या अन्य पेशों से जुड़ी थीं। लेकिन आज वे सब देह व्यापार में शामिल हो गई हैं क्योंकि उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। रिपोर्ट में साफ तौर पर यह भी कहा गया कि ऐसी महिलाओं की संख्या कितनी है, इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है। हालांकि, सड़कों पर घूमती महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है, जो यह संकेत देती है कि यह समस्या कितनी गहरी है।
म्यांमार की इस बदहाली की एक बड़ी वजह कारखानों का बंद होना भी है। साल 2026 तक म्यांमार में कपड़ों के उद्योग में लगभग 16 लाख महिलाओं को रोजगार देने का लक्ष्य था। ये कारखाने खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए जीवन का सहारा थे। लेकिन जब से सैन्य तख्तापलट हुआ, तब से कई कारखाने बंद हो गए। बड़ी-बड़ी कंपनियां म्यांमार को छोड़कर बाहर चली गईं। इन कंपनियों के जाने से हजारों महिलाओं का रोजगार छिन गया।
इन सबके बीच, सबसे ज्यादा तकलीफ उन महिलाओं को हुई जो पढ़ी-लिखी थीं और कभी अपने घर और समाज में सम्मान की नजर से देखी जाती थीं। शिक्षिका और डॉक्टर जैसे पेशों में काम करने वाली महिलाएं अब समाज की नजरों में गिर रही हैं क्योंकि उन्हें पेट पालने और परिवार का खर्चा चलाने के लिए जिस्मफरोशी करनी पड़ रही है। यह बात जितनी दुखद है, उतनी ही सोचने पर मजबूर कर देने वाली है।
महामारी और राजनीतिक संकट के चलते हालात इतने खराब हो गए हैं कि म्यांमार में अब सामान्य जीवन जीना मुश्किल हो गया है। रोजमर्रा की चीजें महंगी हो गई हैं। खाने-पीने की चीजों से लेकर दवाइयों तक की कीमतें आसमान छू रही हैं। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग इन हालातों में सबसे ज्यादा पिस रहे हैं।
मे जैसी कई महिलाएं न सिर्फ आर्थिक तंगी का सामना कर रही हैं, बल्कि उन्हें समाज से भी लड़ना पड़ रहा है। देह व्यापार जैसे काम को समाज में गलत माना जाता है। ऐसे में जब कोई महिला यह काम करने लगती है, तो उसे समाज के ताने सुनने पड़ते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचता, तब वे क्या करें? मे ने अपने पिता के इलाज के लिए यह कदम उठाया, तो दूसरी महिलाएं अपने बच्चों के पेट भरने के लिए ऐसा कर रही हैं। यह कहानी सिर्फ म्यांमार की नहीं है, बल्कि उन लाखों महिलाओं की है जो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इसी तरह की परिस्थितियों का सामना कर रही हैं।
म्यांमार की यह स्थिति बताती है कि एक देश का राजनीतिक अस्थिरता में जाना सिर्फ सत्ता तक सीमित नहीं होता। इसका असर देश के हर नागरिक पर पड़ता है। खासकर महिलाओं पर इसका प्रभाव कई गुना ज्यादा होता है। म्यांमार की महिलाएं आज जिस हालात में हैं, उसके लिए न सिर्फ महामारी जिम्मेदार है, बल्कि वह राजनीतिक तख्तापलट भी जिम्मेदार है जिसने देश को इस हालत में पहुंचा दिया।
आज म्यांमार में महिलाएं सड़कों पर काम ढूंढती हुई दिखती हैं। कुछ महिलाएं खुद को "डेट गर्ल्स" के तौर पर पेश कर रही हैं, तो कुछ सीधे तौर पर देह व्यापार में शामिल हो चुकी हैं। यह उनकी मजबूरी है, न कि उनकी पसंद।
देश के हालत कब सुधरेंगे, इसका कोई जवाब नहीं है। जब तक राजनीतिक स्थिरता नहीं आएगी और अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं लौटेगी, तब तक ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ती ही जाएगी। म्यांमार की यह कहानी हमें एक गहरी सीख देती है कि एक देश का अस्थिर होना सिर्फ राजनीतिक घटनाक्रम नहीं होता, बल्कि यह लाखों लोगों की जिंदगियों को बर्बाद कर देता है।
मे और उनके जैसी कई महिलाएं आज भी उम्मीद करती हैं कि उनके देश की हालत सुधरेगी। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे कामों में शामिल रहना पड़ेगा, जिन्हें समाज गलत मानता है। म्यांमार की यह त्रासदी सिर्फ आर्थिक संकट की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन महिलाओं के संघर्ष की कहानी है जिन्होंने अपने परिवारों को बचाने के लिए खुद को कुर्बान कर दिया।