Bhopal Tragedy to Pollution-Free India: भारत में बढ़ते प्रदूषण का स्तर एक गंभीर चिंता का विषय

NCI
Bhopal gas Tragedy

भारत में हर साल 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन लोगों की याद में समर्पित है जिन्होंने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गंवाई थी। यह त्रासदी भारत के इतिहास में एक दुखद अध्याय है, जिसने देश और दुनिया को प्रदूषण के खतरों के प्रति गंभीर चेतावनी दी। इस दिन का मुख्य उद्देश्य प्रदूषण से होने वाले नुकसानों के प्रति जागरूकता फैलाना और इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने का संदेश देना है।  


भारत में बढ़ते प्रदूषण का स्तर एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 6 विश्व स्तर पर शीर्ष स्थान पर हैं। दिल्ली जैसे शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) अक्सर 'गंभीर' श्रेणी में पहुंच जाता है। गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जन (emissions), और निर्माण कार्यों के दौरान उठने वाली धूल वायु प्रदूषण के मुख्य कारण हैं। इसके साथ ही, जल और मृदा (soil) प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है।  


मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इस अवसर पर अपने संदेश में सभी से अपील की कि प्रदूषण मुक्त भारत के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हर व्यक्ति को अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर कहा कि पौधरोपण, स्वच्छता अभियानों और टिकाऊ जीवनशैली (sustainable lifestyle) को अपनाकर हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। उन्होंने जनता से आह्वान किया कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण छोड़ने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा।  


वर्तमान में भारत में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत फसल अवशेष (crop residue) जलाना है। हर साल सर्दियों के महीनों में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जलने वाले पराली (stubble) से दिल्ली-एनसीआर (National Capital Region) में स्मॉग (smog) की समस्या पैदा होती है। इसके अलावा, इंडस्ट्रियल प्रदूषण और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहे हैं। भारत सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) लॉन्च किया है, जिसका लक्ष्य 2024 तक प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण को 20-30% तक कम करना है।  


प्लास्टिक प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है। देश में हर साल लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 60% से अधिक कचरा पुनर्चक्रण (recycling) नहीं हो पाता। यह नदियों और महासागरों में पहुंचकर समुद्री जीव-जंतुओं को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। प्लास्टिक के इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सरकार ने सिंगल-यूज प्लास्टिक (single-use plastic) पर प्रतिबंध लगाने की पहल की है।  


इसके अलावा, जल प्रदूषण के कारण नदियों की स्थिति भी चिंताजनक है। गंगा और यमुना जैसी नदियों में औद्योगिक कचरे, घरेलू सीवेज और धार्मिक गतिविधियों के कारण प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है। 'नमामि गंगे' जैसे अभियानों के माध्यम से इन नदियों को साफ करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन इसमें जनता की सक्रिय भागीदारी बेहद जरूरी है।  


प्रदूषण नियंत्रण के लिए सबसे बड़ा समाधान लोगों की जागरूकता और सामूहिक प्रयास है। यदि हम नियमित रूप से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें, ऊर्जा की बचत करें और कचरे का सही तरीके से निपटान करें, तो प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है। इसके अलावा, बड़े पैमाने पर पौधरोपण अभियान चलाकर पर्यावरण को हरा-भरा बनाया जा सकता है। हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझे और उनका पालन करे।  


राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस केवल एक प्रतीकात्मक दिन नहीं है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि प्रदूषण के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए त्वरित और ठोस कदम उठाना जरूरी है। यह समय है कि हम सभी मिलकर स्वच्छ भारत और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण की दिशा में काम करें। केवल सरकारी योजनाओं और नीतियों पर निर्भर रहने के बजाय हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। यदि हम आज से ही छोटे-छोटे कदम उठाना शुरू करें, तो भविष्य में हम एक स्वच्छ, हरा-भरा और सुंदर भारत देख सकते हैं।  


इस राष्ट्रीय दिवस पर हम सभी को यह प्रण लेना चाहिए कि हम प्रदूषण को कम करने के हरसंभव प्रयास करेंगे। आइए, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करें और आगामी पीढ़ियों को एक बेहतर और सुरक्षित पृथ्वी सौंपें। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन लोगों को जिन्होंने भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गंवाई थी।  

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