AI Revolution in Ethics |
तकनीकी और नैतिकता (ethics) के बीच बढ़ते संबंधों ने एक नई दिशा ली है। ओपनएआई ने ड्यूक यूनिवर्सिटी की एक शोध टीम को $1 मिलियन का अनुदान (grant) प्रदान किया है। यह अनुदान "मेकिंग मॉरल एआई" परियोजना (project) के लिए है, जिसे ड्यूक यूनिवर्सिटी के मोरल एटीट्यूड्स एंड डिसीज़न लैब (MADLAB) संचालित कर रहा है। इस लैब का नेतृत्व प्रोफेसर वाल्टर सिनॉट-आर्मस्ट्रांग और सह-अन्वेषक (co-investigator) जाना शाईच बर्ग कर रहे हैं। यह परियोजना एक "मॉरल जीपीएस" (moral GPS) तैयार करने पर केंद्रित है, जो नैतिक निर्णय लेने में मार्गदर्शन कर सके।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि मानव नैतिक दृष्टिकोण और निर्णय कैसे बनते हैं और एआई (AI) इसमें कैसे योगदान दे सकता है। यह शोध कंप्यूटर साइंस, दर्शन (philosophy), मनोविज्ञान (psychology), और न्यूरोसाइंस (neuroscience) जैसे विविध क्षेत्रों को जोड़कर किया जा रहा है। नैतिकता जैसे जटिल विषय को समझने और एआई के ज़रिए इसका उपयोग करने की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण है।
एआई (AI) और नैतिकता का मेल आज की सबसे पेचीदा और विचारणीय बहसों में से एक है। कल्पना कीजिए, एक एल्गोरिदम (algorithm) जो नैतिक दुविधाओं (ethical dilemmas) का आकलन करता है, जैसे कि एक स्वायत्त वाहन (autonomous vehicle) को यह तय करना हो कि किसी दुर्घटना में किसे बचाना है। या फिर एक एआई जो व्यापारिक निर्णयों में नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करता हो। लेकिन, सवाल उठता है कि ऐसे उपकरणों के लिए नैतिक ढांचा (moral framework) कौन तय करेगा? क्या एआई पर ऐसे निर्णय लेने का भरोसा किया जा सकता है जिनका नैतिक असर हो सकता है?
ओपनएआई का यह कदम एआई को नैतिकता के साथ जोड़ने का प्रयास है। लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं है। एआई के मौजूदा सिस्टम पैटर्न (patterns) को पहचानने में तो माहिर हैं, लेकिन गहराई से नैतिक सोच और भावनात्मक (emotional) और सांस्कृतिक (cultural) जटिलताओं को समझने में अभी काफी पीछे हैं। यह शोध इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। लेकिन नैतिकता को एक सटीक प्रणाली (algorithm) में बदलना, जहां मूल्य (values) व्यक्ति, समाज और संस्कृति पर निर्भर करते हैं, एक कठिन कार्य है।
मॉरल एआई के निर्माण की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नैतिकता हर समाज में अलग-अलग होती है। यह व्यक्तिगत अनुभवों, सांस्कृतिक मानदंडों और सामाजिक मूल्यों से प्रभावित होती है। ऐसे में, इन सबको एल्गोरिदम में समाहित करना लगभग असंभव सा लगता है। साथ ही, इस बात का भी खतरा है कि यदि एआई में पारदर्शिता (transparency) और जवाबदेही (accountability) न हो, तो यह पूर्वाग्रह (biases) को बढ़ावा दे सकता है या हानिकारक (harmful) उपयोगों के लिए सक्षम हो सकता है।
ड्यूक यूनिवर्सिटी का यह प्रयास "मॉरल जीपीएस" बनाने की दिशा में एक आरंभिक कदम है। यह एक ऐसा उपकरण होगा जो लोगों को नैतिक निर्णय लेने में सहायता करेगा। यह विचार जितना प्रेरणादायक है, उतना ही चिंताजनक भी। एआई को जीवनरक्षक (life-saving) निर्णयों में सहायता देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह भी संभव है कि इसका उपयोग रक्षा रणनीतियों (defense strategies) या निगरानी (surveillance) के लिए किया जाए। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या राष्ट्रीय हितों (national interests) या सामाजिक लक्ष्यों (societal goals) के नाम पर अनैतिक (unethical) एआई कार्यों को सही ठहराया जा सकता है?
ओपनएआई का लक्ष्य उन एल्गोरिदम को विकसित करना है, जो चिकित्सा (medical), कानून (law), और व्यापार (business) जैसे क्षेत्रों में मानव नैतिक निर्णयों की भविष्यवाणी (forecast) कर सकें। लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि नैतिकता केवल तर्कसंगत (logical) सोच का विषय नहीं है। इसमें गहरे भावनात्मक और सांस्कृतिक तत्व शामिल होते हैं। यह एआई के लिए एक बड़ी कमी है, क्योंकि इसे इन गहराइयों को समझने की क्षमता नहीं है।
मॉरल एआई को बनाने में बहु-विषयक (multi-disciplinary) सहयोग की आवश्यकता होगी। फिलहाल, इस परियोजना का उद्देश्य यह समझना है कि लोग नैतिक निर्णय कैसे लेते हैं और एआई इस प्रक्रिया में कैसे मदद कर सकता है। इसके लिए मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस जैसे क्षेत्रों का अध्ययन किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, यदि एआई किसी चिकित्सा निर्णय में सहायता करता है, जैसे कि कौन सा उपचार (treatment) मरीज के लिए सबसे अच्छा है, तो इसका परिणाम जीवन और मृत्यु के बीच हो सकता है।
लेकिन एआई को ऐसे जटिल और संवेदनशील क्षेत्रों में इस्तेमाल करने से पहले हमें इसके जोखिम (risks) और संभावित दुष्प्रभाव (side effects) पर विचार करना होगा। यदि यह तकनीक गलत हाथों में जाती है, तो इसका उपयोग नुकसान पहुंचाने के लिए किया जा सकता है। इसके लिए नैतिकता और एआई के बीच एक संतुलन (balance) बनाने की आवश्यकता है।
ओपनएआई का यह निवेश एक महत्वपूर्ण शुरुआत है, लेकिन इसे सही दिशा में ले जाने के लिए डेवलपर्स (developers) और नीति निर्माताओं (policymakers) को साथ काम करना होगा। एआई उपकरणों को सामाजिक मूल्यों के साथ जोड़ना, निष्पक्षता (fairness) और समावेशिता (inclusivity) पर जोर देना, और पूर्वाग्रहों और अनपेक्षित परिणामों (unintended consequences) से बचाना आवश्यक है।
जैसे-जैसे एआई हमारे जीवन के हर पहलू में शामिल हो रहा है, इसके नैतिक प्रभावों पर ध्यान देना अनिवार्य हो गया है। "मेकिंग मॉरल एआई" जैसी परियोजनाएं इस दिशा में एक नई शुरुआत हैं। लेकिन इन परियोजनाओं को सावधानीपूर्वक और जिम्मेदारी (responsibility) के साथ चलाना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि एआई प्रौद्योगिकी (technology) का उपयोग नवाचार (innovation) और जिम्मेदारी (responsibility) के बीच संतुलन बनाए रखते हुए किया जाए।
नैतिकता को तकनीकी उपकरणों में कैसे शामिल किया जाए, यह सवाल सरल नहीं है। लेकिन ड्यूक यूनिवर्सिटी की इस परियोजना ने एक ऐसा मार्ग प्रशस्त किया है, जहां एआई का उपयोग समाज की भलाई (greater good) के लिए किया जा सकता है। हालांकि, यह केवल एक आरंभिक कदम है। नैतिकता और एआई के इस जटिल क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सतर्कता और निरंतर प्रयास की आवश्यकता होगी।