Sugarcane Farming: गन्ने की खेती का नया तरीका- STP विधि!

NCI


 

भारत में गन्ने की खेती प्रमुख कृषि गतिविधियों में से एक है और इससे शक्कर, गुड़, और अन्य उत्पाद बनते हैं। बढ़ती मांग के साथ, किसानों को अपनी उपज बढ़ाने के लिए नई तकनीकों की जरूरत महसूस होती है। ऐसी ही एक आधुनिक विधि है STP (Space Transplanting Technique) जो गन्ने की नर्सरी को कम समय, कम लागत, और कम बीज में तैयार करने का तरीका प्रदान करती है। इस तकनीक का उद्देश्य पारंपरिक खेती से हटकर बेहतर परिणाम देना है, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ता है बल्कि खेत में पौधों का घनत्व भी संतुलित रहता है। STP विधि से खेती करने से खेती की लागत कम होती है, जिससे छोटे और मध्यम वर्ग के किसान लाभान्वित होते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होती है।


STP विधि क्या है?

STP विधि यानी स्पेस ट्रांसप्लांटिंग तकनीक गन्ने की खेती में एक उन्नत तरीका है, जिसमें गन्ने के एक आंख वाले टुकड़े (seed set) को खास तरीके से तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में गन्ने के टुकड़ों को मिट्टी के बेड (bed) पर लगभग 30-45 सेंटीमीटर की दूरी पर रखा जाता है ताकि पौधे में जड़ें अच्छी तरह विकसित हो सकें। इसे बिछाने के बाद, इन टुकड़ों पर हल्की मिट्टी डाली जाती है जिससे नमी बनी रहे। STP विधि में बीजों को तैयार करने के लिए इन बेड को गन्ने की पत्तियों और जूट की बोरी से ढका जाता है, जिससे नमी और गर्मी भीतर बनी रहती है। इस प्रक्रिया के तहत अंकुरण बेहतर होता है, जो पौध को स्वस्थ और रोग मुक्त रखने में सहायक है। इस तकनीक से बीजों की जरूरत भी कम हो जाती है, जिससे किसानों का खर्च कम होता है और उन्नत उत्पादन मिलता है।


STP विधि के लाभ

STP विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें कम बीजों का उपयोग होता है, जिससे किसानों के खर्च में कटौती होती है। पारंपरिक खेती के मुकाबले, इस तकनीक में बीजों की मात्रा लगभग दस फीसदी तक कम लगती है। इसके अतिरिक्त, STP विधि से तैयार पौधों में जड़ें मजबूत बनती हैं, जिससे पौधे अधिक स्वस्थ रहते हैं और उनकी ग्रोथ (growth) में रुकावटें नहीं आतीं। यह विधि उन किसानों के लिए भी फायदेमंद है जिनके खेत पूरी तरह तैयार नहीं होते हैं या जिनके खेत में पहले से कोई दूसरी फसल लगी होती है। ऐसे में STP विधि का उपयोग करके किसान नर्सरी तैयार कर सकते हैं और अपनी मुख्य फसल की रोपाई बाद में आसानी से कर सकते हैं। इस तकनीक से न केवल समय की बचत होती है बल्कि पौधों में अधिक उपज क्षमता भी बनी रहती है।


गन्ने की रोपाई में STP विधि का महत्व

STP विधि में गन्ने के एक आंख वाले टुकड़े को रोपाई के लिए तैयार किया जाता है, जिससे अंकुरण की दर (germination rate) बेहतर होती है। पारंपरिक बुआई में, खेत में सीधे गन्ने के टुकड़े लगाए जाते हैं, जिनमें अंकुरण दर कभी-कभी कम रहती है और खेत में पौधों के बीच अंतराल भी आ सकता है। जबकि STP विधि में पौधों के बीच समान दूरी रखी जाती है जिससे पूरा खेत पौधों से भरा रहता है और फसल में कोई अंतराल नहीं आता। इस तकनीक से पौधों की ग्रोथ में एक समानता आती है, जिससे अंततः फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त, इस विधि में पौधों को जल्दी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है, जिससे वे तेजी से बढ़ते हैं और फसल की समय सीमा भी घट जाती है।


कम लागत और समय की बचत

STP विधि की एक बड़ी खासियत यह है कि इसमें लागत भी कम आती है और समय की भी बचत होती है। इस तकनीक से किसान अपने खेत को लंबे समय तक तैयार करने के झंझट से बच सकते हैं। जब खेत में पहले से कोई दूसरी फसल लगी हो, तो किसान STP विधि से नर्सरी में पौध तैयार कर सकते हैं और उस फसल के बाद उन्हें खेत में रोपाई कर सकते हैं। इस प्रक्रिया से लगभग डेढ़ महीने का समय बचता है, जिससे अगली फसल जल्दी तैयार होती है। यह विधि छोटे और सीमित संसाधनों वाले किसानों के लिए अत्यंत फायदेमंद होती है क्योंकि इससे उनकी लागत घटती है और उत्पादन की दर में भी वृद्धि होती है। यह एक आर्थिक दृष्टिकोण से भी कारगर है, जिससे किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं।


बीमारियों और कीटों का कम खतरा

STP विधि में गन्ने के पौधों को नर्सरी में पहले से तैयार किया जाता है, जिससे खेत में सीधे बुआई की अपेक्षा रोग और कीटों का खतरा कम हो जाता है। जब पौधे पहले से ही विकसित हो चुके होते हैं, तो खेत में उनकी रोपाई के दौरान उन्हें शुरुआती दिनों में संक्रमण का खतरा कम होता है। इसके अलावा, इस विधि में पौधों की वृद्धि के दौरान उन्हें नियमित देखभाल की जरूरत होती है, जिससे कोई भी समस्या होने पर उसे तुरंत समाधान किया जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग करने वाले किसानों के अनुभव बताते हैं कि इस विधि से पौधों की विकास दर बेहतर होती है और रोगों का प्रभाव भी न्यूनतम होता है। इससे उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार आता है और फसल की गुणवत्ता बरकरार रहती है।


STP विधि में मौसम का प्रभाव

STP विधि को हर मौसम में अपनाया जा सकता है, लेकिन सर्दियों में इसे अपनाने से बेहतर परिणाम मिलते हैं। ठंडे मौसम में पौधों का अंकुरण धीमा होता है, जिससे बीजों को तैयार करने के लिए अधिक समय मिल जाता है। इस तकनीक से तैयार पौधे फरवरी में रोपाई के लिए उपयुक्त होते हैं, जिससे गन्ना जल्दी बढ़ना शुरू कर देता है और पूरे विकास के लिए पर्याप्त समय मिलता है। समय की बचत और उत्पादन में तेजी लाने के लिए यह तकनीक अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार, STP विधि से पौधों को उचित तापमान और नमी मिलती है, जो उनके स्वस्थ विकास में सहायक है। यह विधि हर मौसम में अपनाई जा सकती है, जिससे किसानों को मौसम की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है।


पारंपरिक विधि के मुकाबले STP विधि का लाभ

पारंपरिक विधि में गन्ने के टुकड़े सीधे खेत में लगाए जाते हैं, जिससे अंकुरण दर में गिरावट आ सकती है और खेत में पौधों के बीच में गैप्स (gaps) आ सकते हैं। STP विधि में बीजों को नर्सरी में तैयार करके लगाया जाता है, जिससे हर पौधा स्वस्थ होता है और खेत में पौधों के बीच कोई अंतर नहीं रहता। इसके अतिरिक्त, इस विधि से किसानों को गैप फिलिंग की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि खेत में पहले से तैयार पौधे लगाए जाते हैं। इससे न केवल खेत की गुणवत्ता में सुधार आता है बल्कि फसल की उपज में भी वृद्धि होती है। STP विधि में किसानों को खेती के हर पहलू पर ध्यान देने का मौका मिलता है, जिससे उनकी मेहनत भी कम होती है और परिणाम बेहतर होते हैं।


STP विधि का उपयोग और बढ़ती मांग

भारत के विभिन्न राज्यों में गन्ने की खेती में STP विधि की बढ़ती मांग के कारण कई किसान इस तकनीक को तेजी से अपना रहे हैं। इस विधि की सहायता से किसान बेहतर परिणाम प्राप्त कर रहे हैं, जिससे उनके उत्पादन में वृद्धि हो रही है। यह तकनीक न केवल किसानों के लिए लाभकारी है बल्कि देश के शुगर उद्योग के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस तकनीक को अपनाने वाले किसान बताते हैं कि इससे उनकी मेहनत, समय, और लागत में कमी आती है, और वे अधिक स्वस्थ पौधों को विकसित कर सकते हैं। कई कृषि विशेषज्ञ और वैज्ञानिक इस विधि को गन्ने की खेती में एक क्रांतिकारी कदम मानते हैं, जो भविष्य में गन्ना उत्पादन में एक नई दिशा दे सकता है।


STP विधि: छोटे और बड़े किसानों के लिए एक आदर्श तकनीक

STP विधि न केवल बड़े किसानों के लिए बल्कि छोटे किसानों के लिए भी उपयुक्त है। छोटे किसानों के पास सीमित संसाधन होते हैं और वे कम बीज, कम पानी, और कम लागत में अधिक उत्पादन की उम्मीद करते हैं। STP विधि में पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता है, जिससे उनकी लागत और समय में बचत होती है। इस विधि को अपनाकर वे अपनी फसल की गुणवत्ता को सुधार सकते हैं और बेहतर लाभ कमा सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह विधि भविष्य में छोटे किसानों को आर्थिक रूप से अधिक मजबूत बनाएगी। STP विधि से तैयार पौधे खेत में अच्छी तरह से लगते हैं, जिससे उपज में निरंतरता बनी रहती है और उनकी आय में सुधार आता है।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top