Puri Shankaracharya |
Puri Shankaracharya जी ने भारत के वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने यह कहा है कि कुछ लोग मानवता और सहनशीलता का त्याग करके हिंदुओं पर आघात कर रहे हैं, जिसका गंभीर परिणाम हो सकता है। उनका मानना है कि यदि यह गतिविधियां समय रहते नहीं रोकी गईं, तो यह गृह युद्ध (civil war) का रूप ले सकती हैं। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि किसी की उदारता का दुरुपयोग (misuse) नहीं करना चाहिए, क्योंकि जब विवेकी लोग अपनी उदारता को दुर्बलता समझे जाने लगते हैं, तो वे अपने असली स्वरूप का परिचय देते हैं।
शंकराचार्य जी ने विभाजन के बाद भारत की स्थिति का विश्लेषण करते हुए कहा कि विभिन्न प्रधानमंत्रियों ने एक विशेष वर्ग को प्रोत्साहित किया, जबकि हिंदू समाज को दबाने की कोशिश की। इसके बावजूद, हिंदुओं ने अपनी सहिष्णुता और उदारता का परिचय दिया है। लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि इस उदारता का गलत अर्थ न निकाला जाए, क्योंकि यह समाज में असंतुलन उत्पन्न कर सकती है। उनकी यह बात इस ओर संकेत करती है कि एक विवेकी समाज को अपनी मौनता तोड़नी चाहिए और जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
शंकराचार्य जी ने एक उदाहरण के माध्यम से समझाया कि जब छोटी मछलियां उछल-कूद मचाती हैं, तो यह बड़ी मछलियों के लिए संकट का कारण बनती है। इसी तरह, समाज के कुछ वर्ग तंत्र और व्यवहार भी पूरे समाज को संकट में डाल सकते हैं। उन्होंने सभी वर्गों से अनुरोध किया है कि ऐसा कुछ न करें जिससे समाज में अविश्वास (distrust) और अस्थिरता उत्पन्न हो। उनके अनुसार, यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र और वर्ग के दायित्व को संभाले और समाज को विभाजन से बचाए।
शंकराचार्य जी ने वर्तमान सामाजिक समस्याओं को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने यह भी कहा है कि विवेकी व्यक्ति को मौन नहीं रहना चाहिए। उनका मानना है कि यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह स्थिति पूरे समाज के लिए घातक हो सकती है। उनका संदेश यह है कि समाज में हर व्यक्ति और वर्ग का महत्व है, और किसी भी वर्ग या तंत्र को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे असंतोष उत्पन्न हो। उनके अनुसार, यदि समाज के विवेकी लोग मौन रहते हैं, तो यह समस्याओं को और गहराई दे सकता है।
शंकराचार्य जी का यह संदेश आज के समय में बेहद प्रासंगिक है। यह वीडियो समाज को एक चेतावनी और एक समाधान के रूप में देखा जा सकता है। उनकी बातें समाज को न केवल आत्मचिंतन (self-reflection) के लिए प्रेरित करती हैं, बल्कि यह भी सिखाती हैं कि विवेक, उदारता और सहनशीलता के माध्यम से समस्याओं का समाधान संभव है। उनकी इस चेतावनी को गंभीरता से लेते हुए समाज को अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए।