भारत में स्थित मंदिरों में से जगन्नाथ मंदिर को विशेष स्थान प्राप्त है। ओडिशा राज्य के पुरी में स्थित यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके कई रहस्य और मान्यताएँ भक्तों को अचरज में डालते हैं। इस मंदिर की अद्भुत विशेषताएँ जैसे कि इसका उल्टा लहराता ध्वज, काले रंग की तीसरी सीढ़ी और मूर्तियों का रहस्यमय रूपांतरण इसे दुनिया भर के मंदिरों से अलग बनाता है। इस लेख में हम इन अनोखी मान्यताओं और इसके पीछे की पौराणिक कहानियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
तीसरी सीढ़ी का रहस्य – “यम शिला”
जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी को लेकर मान्यता है कि इस पर पैर रखते ही व्यक्ति के पुण्य समाप्त हो जाते हैं, और उसे अपने पापों का फल भुगतने के लिए यमलोक जाना पड़ता है। इसे “यम शिला” भी कहा जाता है, और इसके पीछे की कहानी यमराज और भगवान जगन्नाथ के बीच हुई एक वार्ता से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब मंदिर का निर्माण हुआ और लोग यहाँ भगवान के दर्शन के लिए आने लगे, तो उनके सारे पाप समाप्त हो जाते थे, जिससे वे यमलोक नहीं जाते थे।
यमराज को यह सोचकर चिंता हुई कि यदि सभी अपने पाप समाप्त कर लेंगे तो यमलोक में कोई नहीं जाएगा। तब यमराज ने भगवान जगन्नाथ से इस समस्या का समाधान मांगा। भगवान ने उन्हें आश्वासन दिया कि मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर जो व्यक्ति पैर रखेगा, उसके पुण्य समाप्त हो जाएंगे, और उसे यमलोक जाना ही पड़ेगा। इसके बाद से ही तीसरी सीढ़ी को “यम शिला” का नाम दिया गया, और इस पर कदम रखने से बचने के लिए इसे अन्य सीढ़ियों से अलग, काले रंग में रंगा गया है ताकि लोग इसे पहचान सकें और अनजाने में इस पर पैर न रखें। यह मान्यता आज भी भक्तों के बीच प्रचलित है, और लोग इसके प्रति बेहद सतर्क रहते हैं।
मूर्तियों का नवकलेवर (रूपांतरण) की प्रक्रिया
जगन्नाथ मंदिर की एक और अनोखी विशेषता यहाँ की मूर्तियों का हर 12 वर्ष में बदला जाना है, जिसे नवकलेवर (Nava Kalebar) कहा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों में ब्रह्म पदार्थ को स्थापित किया जाता है। ब्रह्म पदार्थ को भगवान कृष्ण का हृदय माना जाता है और इसे अत्यंत पवित्र एवं रहस्यमयी माना जाता है।
इस प्रक्रिया के समय पूरे मंदिर परिसर को अंधकार में डुबा दिया जाता है और केवल चुनिंदा पुजारियों को ही मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है। पुजारियों की आँखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है ताकि वे इस रहस्यमयी पदार्थ को सीधे देख न सकें। माना जाता है कि अगर कोई गलती से भी इस ब्रह्म पदार्थ को देख लेता है, तो वह अंधा हो सकता है या उसका जीवन खतरे में पड़ सकता है। इस रहस्य को जानने के बाद भक्तों का आस्था और श्रद्धा में और वृद्धि हो जाती है। इस प्रक्रिया में भी एक अद्भुत तथ्य यह है कि ब्रह्म पदार्थ को स्थानांतरित करते समय पुजारियों को इसे छूने पर जीवन के होने का एहसास होता है, जो इसे जीवित माना जाता है।
उल्टा लहराता ध्वज
जगन्नाथ मंदिर की छत पर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। यह घटना भक्तों और वैज्ञानिकों दोनों को आश्चर्यचकित करती है। आमतौर पर ध्वज हवा की दिशा में लहराते हैं, लेकिन इस ध्वज का हवा के विपरीत दिशा में लहराना इसे विशेष बनाता है। प्रतिदिन शाम को इस ध्वज को बदलने की प्रक्रिया भी बेहद रोमांचक है। हर शाम एक भक्त, जो मंदिर का पुजारी होता है, बिना किसी सहारे के मंदिर के शिखर पर चढ़कर ध्वज को बदलता है।
यह प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है और इसमें मंदिर के पुजारियों का साहस और भक्ति देखते ही बनती है। इस ध्वज पर भोलेनाथ का चिह्न अंकित है, जो इसे और अधिक पवित्र बनाता है। भक्तों का मानना है कि यह ध्वज भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक है और यही कारण है कि यह हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
अदृश्य छाया वाला गुंबद
जगन्नाथ मंदिर का गुंबद भी अपने आप में एक रहस्य है। इस गुंबद की छाया कभी भी ज़मीन पर नहीं पड़ती, जो वैज्ञानिकों के लिए एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। मंदिर के गुंबद की छाया का ज़मीन पर न पड़ना वास्तुकला की दृष्टि से एक अनोखी घटना है। इसके बारे में न जाने कितनी ही धारणाएँ और वैज्ञानिक शोध हुए हैं, परंतु इसका सही कारण आज तक कोई नहीं जान पाया है। मंदिर का यह गुंबद भगवान की शक्ति और उनकी अदृश्य उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
सुदर्शन चक्र का अद्वितीय स्थान
मंदिर के शीर्ष पर स्थित सुदर्शन चक्र, जो हर दिशा से देखने पर सामने प्रतीत होता है, यह भी एक अद्भुत घटना है। भक्तों का मानना है कि यह चक्र भगवान जगन्नाथ के संरक्षण और अनंतता का प्रतीक है। यह चक्र इस प्रकार से स्थापित है कि पुरी के किसी भी स्थान से देखने पर यह ऐसा प्रतीत होता है कि वह आपके ठीक सामने ही स्थित है। यह मंदिर की विशेष स्थापत्य कला और भक्तों की आस्था को और मजबूत करता है।
विभीषण की पूजा
त्रेता युग के अनुसार, भगवान राम ने विभीषण को अपने कुल देवता भगवान जगन्नाथ की पूजा करने का आशीर्वाद दिया था और यह भी वरदान दिया कि वे चिरंजीवी रहेंगे। विभीषण, जो रावण के भाई थे, भगवान राम के अनन्य भक्त माने जाते थे। इस मान्यता के अनुसार, विभीषण आज भी भगवान जगन्नाथ के प्रथम पूजक माने जाते हैं और कहा जाता है कि प्रत्येक पूजा के समय वे मंदिर में उपस्थित रहते हैं। विभीषण की उपस्थिति को इस मंदिर के महत्व और इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है, जो इसे पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टि से एक अद्वितीय स्थान बनाता है।
प्रसाद की अद्भुत व्यवस्था
जगन्नाथ मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करते हैं। यहाँ 20,000 भक्तों के लिए प्रतिदिन प्रसाद तैयार किया जाता है, परंतु विशेष अवसरों पर लाखों भक्तों के लिए भी भोजन की व्यवस्था की जाती है। सबसे विशेष बात यह है कि प्रसाद कभी भी समाप्त नहीं होता, चाहे जितने भी भक्त क्यों न आ जाएं।
मंदिर में प्रसाद के रूप में तैयार किए गए भोजन की यह अद्वितीय व्यवस्था इसे और भी खास बनाती है। भगवान के इस भव्य भंडार को भक्तगण ईश्वर की असीम कृपा मानते हैं। इस अद्भुत व्यवस्था के पीछे मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ खुद इसे सम्भालते हैं और भक्तों को कभी निराश नहीं होने देते।
समुद्र की आवाज़ का रहस्य
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा एक और अद्भुत रहस्य है कि मंदिर के अंदर समुद्र की आवाज़ सुनाई नहीं देती, जबकि बाहर आते ही यह स्पष्ट रूप से सुनाई देने लगती है। इस घटना का अनुभव हर भक्त यहाँ करता है, जो इसे और भी रोमांचक बना देता है। यह एक अद्वितीय घटना है और इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण आज तक नहीं खोजा जा सका है। भक्त इसे भगवान की लीला मानते हैं, जो उनके और भी करीब ले आता है।
गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित
जगन्नाथ मंदिर में केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों को प्रवेश की अनुमति है। कहते हैं कि अतीत में जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला किया, तब कई बार इस मंदिर पर आक्रमण करने का प्रयास हुआ। इस मंदिर को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया, जिसके बाद सुरक्षा के दृष्टिकोण से केवल हिंदुओं को ही यहाँ प्रवेश की अनुमति दी गई।
मुस्लिम भक्त का प्रसंग
मंदिर की मान्यताओं में एक खास प्रसंग एक मुस्लिम भक्त का है, जिसे एक प्रेरणादायक कहानी के रूप में देखा जाता है। इस भक्त का नाम सालब था, और वह भगवान जगन्नाथ का अनन्य भक्त था। सालब की माँ हिंदू थीं, और उसने अपने पुत्र को भगवान जगन्नाथ की भक्ति करने की प्रेरणा दी। सालब ने भगवान की भक्ति की और उसकी एक गंभीर चोट ठीक हो गई।
इस घटना के बाद सालब ने अपना जीवन भगवान की सेवा में समर्पित कर दिया। उसकी मृत्यु के बाद भगवान के रथ ने उसकी मजार के पास रुक कर उसकी भक्ति को सम्मानित किया। यह घटना इस बात को दर्शाती है कि भगवान किसी भी धर्म या जाति के बंधन में नहीं बंधे होते और वे अपने सभी भक्तों को समान दृष्टि से देखते हैं।
श्रीजगन्नाथमहात्म्यं सम्पूर्णं यम-सीढ्यां द्वितीयं चरणं न धरति।
प्राप्तं पुण्यं फलति जीवनमंगलं तस्य मनः सुखसंपदाम्।
भगवान जगन्नाथ की महिमा अपार है, जिनकी तीसरी सीढ़ी पर कदम रखने से बचने वाला व्यक्ति जीवन में सुख, समृद्धि और शांति को प्राप्त करता है। यह श्लोक जगन्नाथ मंदिर के तीसरी सीढ़ी के रहस्य से संबंधित है, जो इसे पाप और पुण्य का प्रतीक बनाता है।