मां कामाख्या का मंदिर असम के गुवाहाटी शहर में नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह स्थान न केवल एक पवित्र स्थल है, बल्कि यह रहस्यमयी घटनाओं और तांत्रिक साधना का केंद्र भी है। मां कामाख्या का यह शक्तिपीठ उन 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती के अंग गिरे थे। यहां देवी सती के योनि का भाग गिरा था, जिसके कारण इसे सबसे पवित्र और प्राचीन शक्तिपीठों में गिना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह स्थल हर प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने की शक्ति रखता है। मां कामाख्या का यह शक्तिपीठ जहां श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, वहीं यह विज्ञान के लिए भी चुनौतीपूर्ण स्थान है, क्योंकि यहां होने वाली चमत्कारी घटनाएं और अनसुलझे रहस्य विज्ञान की समझ से बाहर हैं।
Maa Kamakhya-M- Devi Temple- Assam |
कामाख्या मंदिर का इतिहास और धार्मिक महत्व
कामाख्या मंदिर का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसके साथ अनेक धार्मिक कथाएं और पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं। इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में कोच राजवंश के राजा नर नारायण द्वारा करवाया गया था, जिन्हें मां कामाख्या का परम भक्त माना जाता था। कहा जाता है कि राजा नर नारायण और उनके परिवार के लोग देवी की कृपा पाने के लिए नियमित रूप से यहां आते थे और पूजा-अर्चना करते थे। इसी स्थान पर राजा नर नारायण को मां का शाप भी मिला था, जो उनके वंश के लिए अमिट बन गया।
यह मंदिर अपनी तांत्रिक साधना के लिए भी जाना जाता है। भारत के कोने-कोने से तांत्रिक साधक यहां आकर विशेष तंत्र साधनाएं करते हैं। यह माना जाता है कि यहां की ऊर्जा इतनी शक्तिशाली है कि यह साधकों को अलौकिक शक्तियां प्रदान कर सकती है। यहां की साधना में तंत्र-मंत्र, यज्ञ, बलि और अघोरी साधनाएं शामिल हैं, जो भक्तों को किसी भी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने में सक्षम बनाती हैं।
मां कामाख्या और केंदु कलाई जी की कथा
मां कामाख्या के सबसे बड़े उपासकों में से एक थे केंदु कलाई जी। उन्हें न केवल मां का भक्त माना जाता था, बल्कि उन्हें एक महान तांत्रिक साधक के रूप में भी जाना जाता था। केंदु कलाई जी के बारे में कहा जाता है कि वे मां के मंदिर में रात के समय पूजा करते थे और इस दौरान मां का साक्षात दर्शन करते थे। उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर, वे मां के समक्ष अपनी भक्ति और साधना का प्रदर्शन करते थे, और मां उन्हें नृत्य के माध्यम से अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन देती थीं। यह दृश्य केवल केंदु कलाई जी के लिए था, क्योंकि मां के दर्शन करना आम व्यक्ति के लिए संभव नहीं था। यह कथा मां के भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है और इसने मां के प्रति उनकी आस्था को और भी मजबूत किया है।
केंदु कलाई जी का एक और बड़ा चमत्कार तब हुआ जब एक दुखियारी मां अपनी मरी हुई बच्ची को लेकर उनके पास आई। वह मां बिलखते हुए केंदु कलाई जी से प्रार्थना करने लगी कि वे अपनी शक्तियों का उपयोग कर उसकी बच्ची को पुनर्जीवित कर दें। केंदु कलाई जी ने पहले तो मना कर दिया, क्योंकि प्रकृति का नियम है कि जो एक बार मृत्यु को प्राप्त हो गया, वह वापस जीवित नहीं हो सकता। परंतु उस महिला की आस्था को देखकर, उन्होंने मां कामाख्या से प्रार्थना की। जैसे ही उन्होंने मां से विनती की, मां कामाख्या ने बच्ची को पुनर्जीवित कर दिया। यह चमत्कार मंदिर के चारों ओर चर्चा का विषय बन गया और केंदु कलाई जी की महिमा और बढ़ गई।
राजा नर नारायण की मां के दर्शन की इच्छा
राजा नर नारायण, कूच बिहार के शासक थे और वे भी मां कामाख्या के बड़े भक्त थे। जब उन्होंने केंदु कलाई जी की चमत्कारी शक्तियों और मां के दर्शन के बारे में सुना, तो उनके मन में भी मां के दर्शन की गहरी इच्छा उत्पन्न हुई। उन्होंने केंदु कलाई जी से प्रार्थना की कि उन्हें मां का साक्षात दर्शन करने का अवसर दिया जाए। केंदु कलाई जी पहले तो इस पर सहमत नहीं हुए, क्योंकि मां का दर्शन करने की अनुमति केवल साधकों को ही दी जाती थी, वह भी बिना किसी छल-कपट के।
लेकिन राजा नर नारायण की प्रबल इच्छा और उनके आग्रह के चलते केंदु कलाई जी को आखिरकार उन्हें गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी। केंदु कलाई जी ने शर्त रखी कि राजा केवल एक छेद से ही मां के नृत्य का दर्शन कर सकते हैं। किंतु जैसे ही मां को इस छल का आभास हुआ, उन्होंने क्रोधित होकर केंदु कलाई का सिर धड़ से अलग कर दिया और राजा नर नारायण को शाप दिया कि उनके वंश का कोई भी सदस्य कभी मां कामाख्या के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकेगा।
कूच बिहार राजवंश पर शाप का असर
केंदु कलाई जी के इस अंतिम बलिदान और मां के शाप का प्रभाव आज भी कूच बिहार राजवंश पर देखने को मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस राजवंश का कोई भी सदस्य मां के क्षेत्र में कदम रखने का साहस नहीं करता, क्योंकि मां का शाप उनके पूरे वंश पर है। आज भी, यदि कूच बिहार के वंशज इस क्षेत्र से गुजरते हैं, तो वे छतरी के नीचे रहते हैं ताकि उनकी नजरें सीधे मां के मंदिर की ओर न जाएं।
ब्रह्मपुत्र हेरिटेज सेंटर और मां कामाख्या से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारी
कामाख्या मंदिर के पास ब्रह्मपुत्र हेरिटेज सेंटर है, जहां इस क्षेत्र से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियां मिलती हैं। यहां एक संग्रहालय है, जहां कूच बिहार के राजवंश की कहानियां और मां कामाख्या की पूजा पद्धति से संबंधित अनेक वस्तुएं प्रदर्शित हैं। यह भी कहा जाता है कि वैष्णव संप्रदाय को अपनाने के बाद कूच बिहार राजवंश ने यह कथा रची ताकि उनकी प्रजा मां कामाख्या की पूजा को लेकर उन्हें दोषी न ठहराए।
उमानंद भैरव का मंदिर
कामाख्या देवी का शक्तिपीठ उमानंद भैरव मंदिर के साथ भी जुड़ा हुआ है। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में एक टापू पर स्थित है और यहां देवी की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव के रूप में भैरव की भी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि उमानंद भैरव के दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस कारण से हर भक्त, जो कामाख्या देवी की पूजा के लिए आता है, वह उमानंद भैरव के दर्शन अवश्य करता है।
तंत्र साधना का केंद्र
कामाख्या मंदिर तंत्र साधना के केंद्र के रूप में विख्यात है। यहां की विशेष तांत्रिक साधनाएं श्रद्धालुओं को चमत्कारिक अनुभव प्रदान करती हैं। मंदिर परिसर में विभिन्न साधक अपनी तांत्रिक साधना के माध्यम से शक्ति अर्जित करते हैं। भक्त मानते हैं कि यहां की साधना इतनी शक्तिशाली होती है कि यह न केवल भौतिक समस्याओं का समाधान करती है, बल्कि आत्मिक और मानसिक परेशानियों का भी निदान करती है।
कामाख्या मंदिर में हर साल अंबूवाची मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से तांत्रिक साधक और श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। अंबूवाची मेला तांत्रिक साधना का पर्व माना जाता है, जिसमें देवी का मासिक धर्म का समय आता है और मंदिर के कपाट तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं। इस दौरान मां की शक्ति अत्यधिक प्रबल होती है, और भक्त इस समय देवी से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं।
भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक
कामाख्या मंदिर आज न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक भी है। लोग यहां अपने दुख-दर्द, मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी, विवाह संबंधी समस्याएं और अन्य व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान पाने के लिए आते हैं। मंदिर की विशेष पूजा, अघोरी साधना और तंत्र-मंत्र की विद्या के माध्यम से भक्तों को समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
मां कामाख्या की कथा और मंदिर की चमत्कारिक घटनाएं लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती हैं। यह स्थान भक्तों को उनके विश्वास और श्रद्धा को और भी प्रबल बनाता है, जो हर भक्त के जीवन में एक नई प्रेरणा का संचार करता है।
"कामाख्या तांत्रिकसिद्धिसाध्या,
योनि शक्ति पीठे महिमा प्रधानम्।
भक्तानां कामनापूर्ति हेतुं,
अधिष्ठात्री देवी नमामि कामाख्याम्॥"
कामाख्या देवी तांत्रिक साधनाओं की सिद्धि प्रदान करने वाली हैं। वह योनि शक्ति पीठ के रूप में प्रतिष्ठित हैं और भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली अधिष्ठात्री देवी हैं। मैं उन मां कामाख्या को नमन करता हूँ। यह श्लोक मां कामाख्या की महानता और उनकी तांत्रिक शक्तियों को दर्शाता है। लेख में कामाख्या मंदिर और उसकी तांत्रिक साधना से जुड़े रहस्यमयी पहलुओं का वर्णन किया गया है, जो श्लोक में उनकी शक्ति और आस्था के प्रतीक रूप में प्रकट होती हैं।