सोमनाथ मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है और इसे शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम माना जाता है। यह मंदिर, गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र के प्रभास पाटन में स्थित है। यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण भी है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा इसके रहस्यमयी और अद्वितीय इतिहास के कारण है, जो इसे एक विशेष धार्मिक महत्व प्रदान करता है। हजारों वर्षों से आस्था के प्रतीक इस मंदिर पर कई आक्रमण हुए, लेकिन इसे हर बार पुनः निर्मित किया गया। यह पुनर्निर्माण न केवल स्थापत्य कला का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और श्रद्धा की मजबूती को भी दर्शाता है।
सोमनाथ की स्थापना की पौराणिक कथा
सोमनाथ मंदिर की कहानी में भगवान चंद्रदेव की पूजा और उनकी मुक्ति की कथा विशेष है। कथा के अनुसार, चंद्रदेव ने प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था। सभी पत्नियों में उनकी प्रिय रोहिणी थी, जिससे वे अन्य पत्नियों की अनदेखी करते थे। जब इस बात का पता प्रजापति दक्ष को चला तो उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दिया कि उनका तेज क्षीण हो जाएगा और वे दुर्बल हो जाएंगे। इस श्राप से चंद्रदेव का तेज कम होने लगा और वे पीड़ित हो गए। अपनी मुक्ति के लिए उन्होंने प्रभास क्षेत्र में आकर भगवान शिव की आराधना की। कठिन तपस्या और महामृत्युंजय मंत्र के जप के बाद शिवजी ने उन्हें श्राप से मुक्ति दी और उनका तेज पुनः प्राप्त हुआ। शिवजी ने यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वयं को स्थापित कर दिया, जिसे सोमनाथ कहा जाता है। इसी कारण इस स्थल का नाम सोमनाथ पड़ा और इसे ज्योतिर्लिंगों में प्रथम माना गया।
आक्रमणों की गाथा: महमूद गजनवी से लेकर औरंगजेब तक
इस अद्वितीय मंदिर पर अनेक विदेशी आक्रमण हुए, विशेषकर मुहम्मद गजनवी के हमले ने इसे बुरी तरह प्रभावित किया। गजनवी ने 1025 ईस्वी में इस मंदिर पर हमला किया और यहाँ की अपार संपत्ति को लूटकर चला गया। सोमनाथ मंदिर का आकर्षण, इसकी सुंदरता और वैभव देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गया था। उसने इस मंदिर पर कुल 17 बार आक्रमण किए और प्रत्येक बार इसे बर्बाद कर दिया। उसकी लूट-पाट के कारण मंदिर नष्ट हो गया, परंतु इसकी पुनःस्थापना में भक्तों का दृढ़ विश्वास बना रहा और मंदिर का पुनर्निर्माण हर बार किया गया।
इसके बाद भी मंदिर पर हमले रुके नहीं। 1297 में दिल्ली सल्तनत के सेनापति नुसरत खां ने इस पर आक्रमण किया और इसकी संपत्ति को लूट लिया। इसके बाद यह मंदिर 14वीं और 15वीं शताब्दी में कई बार खंडित हुआ, लेकिन आस्था के कारण मंदिर का पुनर्निर्माण होता रहा। औरंगजेब के शासनकाल में भी इस मंदिर पर दो बार आक्रमण हुआ और इसे बुरी तरह नष्ट कर दिया गया, लेकिन हिन्दू भक्तों की श्रद्धा और उनके पुनर्निर्माण के संकल्प के कारण यह मंदिर आज भी अस्तित्व में है।
आधुनिक सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण
आज का भव्य सोमनाथ मंदिर सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों का परिणाम है। उन्होंने 1950 में इस मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया और इस कार्य में भारत सरकार ने उनका पूरा साथ दिया। इसके बाद, 1995 में, राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र के शिव भक्तों को समर्पित किया। मंदिर की वर्तमान संरचना में भारतीय वास्तुकला का समृद्ध प्रभाव दिखाई देता है, और इसका भव्य स्वरूप आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला
सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला अपने आप में अनोखी और आकर्षक है। इसका निर्माण भारतीय शिल्पकला की बारीकियों और धार्मिक प्रतीकों को ध्यान में रखकर किया गया है। मंदिर का मुख्य शिखर 150 फीट ऊंचा है और इसके शीर्ष पर एक सोने का कलश स्थापित है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ा देता है। मंदिर के निर्माण में जिस तकनीक का उपयोग किया गया है, वह इसे अत्यधिक मजबूत और सुदृढ़ बनाती है। इसकी भीतरी दीवारों पर भारतीय पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है, जिससे यह मंदिर और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
मंदिर में गुप्त गुफाएं भी हैं, जिनका उपयोग प्राचीन काल में तपस्वी और ऋषि-मुनि अपनी साधना के लिए करते थे। यहां के कुछ स्थानों को विशेष रूप से रहस्यमय माना जाता है और ये किसी रहस्य से कम नहीं हैं। इसके अलावा, मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है, और यह शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थान है।
मोढेरा सूर्य मंदिर: स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण
गुजरात के पाटन जिले में स्थित मोढेरा सूर्य मंदिर, वास्तुकला का अद्वितीय नमूना है। इस मंदिर का निर्माण सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ईस्वी में करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला ऐसी है कि सुबह की पहली किरण गर्भगृह में स्थित मूर्ति पर पड़ती है, जो इसे अद्वितीय बनाती है। इस मंदिर में चूने का प्रयोग नहीं किया गया है, और इसका निर्माण बिना किसी जोड़ के पत्थरों से किया गया है। मंदिर के गर्भगृह और सभा मंडप के निर्माण में उत्कृष्ट शिल्पकला देखने को मिलती है।
मोढेरा सूर्य मंदिर में कुल 52 स्तंभ हैं, जो विभिन्न देवताओं के चित्रों से सजाए गए हैं। इन स्तंभों पर रामायण और महाभारत के प्रसंगों को भी चित्रित किया गया है। इस मंदिर का निर्माण ईरानी शैली में किया गया है और इसके अंदरूनी हिस्सों में प्राचीन भारतीय सभ्यता के उत्कृष्ट उदाहरण देखे जा सकते हैं।
अलाउद्दीन खिलजी और मोढेरा का आक्रमण
अलाउद्दीन खिलजी ने भी मोढेरा सूर्य मंदिर पर आक्रमण किया था, जिससे इसे गंभीर क्षति पहुँची। खिलजी ने मंदिर की मूर्तियों को खंडित कर दिया और इसकी संपत्ति को लूटकर अपने साथ ले गया। इस हमले के बाद से इस मंदिर में पूजा बंद कर दी गई, लेकिन इसकी स्थापत्य कला और धार्मिक महत्व को देखते हुए भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में ले लिया। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया है।
लिंगराज मंदिर: भुवनेश्वर का पवित्र स्थल
उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर शिवजी को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर उड़िया और कलिंग शैली में निर्मित है। यहाँ केवल हिंदुओं का प्रवेश ही अनुमति है। ऐसा माना जाता है कि एक विदेशी पर्यटक के द्वारा पूजा पाठ में बाधा उत्पन्न करने के बाद यहाँ गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया गया। मंदिर के निर्माण का समय 11वीं शताब्दी में माना जाता है, लेकिन इसके कई हिस्से 1500 सालों से भी अधिक पुराने हैं। इस मंदिर के आंतरिक भागों में शिवलिंग स्थापित है, जिसकी पूजा का समय सुबह 6:00 बजे से रात 9:00 बजे तक है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिङ्गं शिवधामं महेश्वरम्।
अनन्ताय नमस्तस्मै यत्र भक्तिर्न क्षीयते॥
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जो शिव का पवित्र धाम और महेश्वर का निवास है, उसे नमन है। यहाँ भक्तों की आस्था कभी कम नहीं होती। यह श्लोक सोमनाथ मंदिर की उस अडिग आस्था और श्रद्धा को प्रकट करता है, जो इतिहास के अनेक आक्रमणों के बावजूद अमर बनी रही। इस मंदिर पर हुए अनगिनत हमलों के बावजूद यहाँ की पवित्रता और शिव भक्तों की श्रद्धा अटूट रही है।
सोमनाथ मंदिर से लेकर अन्य धार्मिक स्थलों की यह यात्रा हमें भारतीय संस्कृति और इतिहास में धार्मिक स्थलों की अद्वितीयता और आस्था की शक्ति को समझाती है। इन मंदिरों पर अनेक आक्रमण हुए, लेकिन इसके बावजूद इनका पुनर्निर्माण और संरक्षण का कार्य निरंतर होता रहा। ये मंदिर भारतीय संस्कृति और समाज में श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बने हुए हैं। इनकी सुंदरता, भव्यता और ऐतिहासिक महत्व को देखकर ही भारतीय सभ्यता की गहराई और इसकी अमूल्य धरोहर का अनुमान लगाया जा सकता है।